‘गांव छोड़ब नाहीं…’जैसे चर्चित गीत के रचयिता और अपनी आवाज देने वाले गुंजायमान करने वाले गायक मधु मंसूरी के गीत को जंगल, पहाड़, शहर-डगर और गांव-खलियान में प्रतिनिधि लोकगीत के दर्जा हासिल कर चुके हैं। नागपुरी भाषा के प्रसिद्ध गायक मधु मंसूरी हंसमुख के गीतों ने झारखंड के आदिवासी आंदोलन को नई राह दिखाई है।
दरअसल साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था नीलांबर द्वारा सामाजिक योगदान के लिए ‘निनाद सम्मान’ झारखंड आदिवासी आंदोलन से जुड़े गायक-गीतकार मधु मंसुरी हंसमुख को देने की घोषणा की गई है। गायक मधु मंसूरी के गीत झारखंड के लोगों के बीच खासे लोकप्रिय हैं। आठ साल की उम्र से ही लोकगीत गा रहे मधु मंसूरी हंसमुख को 73 साल की उम्र में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। वर्ष 1948 में जन्मे हंसमुख ने आदिवासी संस्कृति, सभ्यता, परंपरा और रीति-रिवाज को जिंदा रखने का महत्त्वपूर्ण काम किया है।
दरअसल 20 दिसंबर को आयोजित साहित्य उत्सव ‘लिटरेरिया 2020’ का आयोजन किया जाएगा। इस वर्ष नीलांबर द्वारा राष्ट्रीय स्तर का यह कार्यक्रम 14 से 20 दिसंबर के दौरान ऑनलाइन माध्यम से आयोजित किया जा रहा है। यह आयोजन कई साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के अपने में समेटे हुए है। इसमें संगोष्ठी, कविता, कहानी, नाटक, नृत्य, संगीत जैसी विधाओं की प्रस्तुति की जा रही है। अखिल भारतीय स्तर पर इसमें कई युवा और वरिष्ठ साहित्यकार-कलाकार शामिल होंगे।