जब अँधेरा गहरा हो तो घबराएं नहीं, यकीं मानें सवेरा निकट है!
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जब अँधेरा गहरा हो तो घबराएं नहीं, यकीं मानें सवेरा निकट है!

Exclusive Interview of Ronit Roy

रोहित चौबे, पटना।
बॉलीवुड (Bollywood) में लगभग सभी सितारों ने अपने फिल्मी सफर में एक ऐसा दौर देखा है जब उनके पास कोई काम नहीं होता या फिर उनकी फ़िल्में लगातार बॉक्स ऑफिस पर अपना दम तोडती है. यह वो दौर होता है जब जिंदगी में गहरा अँधेरा छा जाता है और सवेरा नज़र नहीं आता. और फिर एक सुनहरा दौर ऐसा आता है जब लोग आँखों में बसा लेते हैं. आइए जानते हैं ऐसे ही शख्स रोनित रॉय (Ronit Roy) की कहानी.

फिल्म इंडस्ट्री के महानायक अमिताभ बच्चन के बारे में हम सब जानते हैं कि उन्होंने भी अपने फ़िल्मी करियर में बुरा दौर देखा है. कुछ ऐसा ही दौर देखा टेलीविज़न जगत के बहुचर्चित कलाकार रोनित रॉय ने. इन्हें छोटे परदे का अमिताभ बच्चन भी कहा जाता है. इन्हें हमने कई चर्चित किरदारों में देखा है जैसे क्योंकि सास भी कभी बहु थी में “मिहिर वीरानी”, तो कसौटी जिंदगी की में “मिस्टर बजाज”, या फिर बंदिनी के “धर्मराज”. हर किरदार को इन्होने शिद्दत से निभाया. आज रोनित रॉय एक जाना माना नाम है लेकिन इसके पीछे इनकी संघर्ष बहुत लम्बी है. इन्होने साबित कर दिया के जब जिंदगी में अँधेरा गहराता है तो हमें हताश और निराश न हो कर उसका सामना धैर्य और मजबूत मन से करना चाहिए क्युकी इसके आगे एक नया सवेरा आपका इंतज़ार कर रहा होता है.

Ronit Roy

कैसे हुआ फिल्मों के प्रति आकर्षण? क्यों चुना यह करियर?
रोनित रॉय का जन्म 11 अक्टूबर 1965 में नागपुर में हुआ. इन्होने अपनी पढाई अहमदबाद में की और इनके पिता मशहूर डायरेक्टर सुभाष घई के घनिष्ट मित्र थे. वह सुभाष घई से मिलने अक्सर मुंबई आते और वही से शुरू हुआ रोनित रॉय का फिल्मों के प्रति आकर्षण. जब भी वो शूटिंग पर जाते तो उन्हें वहा का माहौल बहुत अच्छा लगता और फ़िल्मी सितारों के आस-पास उनके चाहने वालों की भीड़ और उनका ऑटोग्राफ देना उन्हें बहुत भाता था. फिल्म सेट का माहौल, डायरेक्टर का कैमरे के साथ खेलना, उनका एक्शन बोलना जिसके तुरंत बाद सितारें अपना डायलाग बोलते थे, फिल्म के सेट पर सितारों को हाय-हेलो बोलने के लिए उनके चाहने वालो का पीछे दौड़ना, एक बार हाथ मिलाने का मौका निकालना, यह सब उन्हें कुछ ऐसा भाया के उन्होंने अपनी होटल मैनेजमेंट की डिग्री को साइड कर निश्चय कर लिया के उन्हें भी इसी कैमरे और बॉलीवुड की चकाचौंध में खुद को रमना है. यह पहली बार था जब फिल्मों की दुनिया ने उन्हें अपनी तरफ आकर्षित कर लिया था जिसके उपरांत उन्होंने फिर कभी पीछे देखने का फैसला नहीं किया. रोनित रॉय ने अपने पिताजी को अपनी इच्छा ज़ाहिर की मगर वह जानते थे की बॉलीवुड की दुनिया रंगीन तो है लेकिन इसमें संघर्ष भी बहुत है. यहाँ शोहरत तो है लेकिन एक बार जब कुछ समय के लिए ही सही अगर आप परदे से गायब होते है तो आपके जगह कोई और ले लेता है जिससे शोहरत की चमक धीमी पड़ जाती है. उन्होंने अपने बेटे को सलाह दी के वह साथ-साथ कोई नौकरी भी करे ताकि अगर वो अभिनय में सफल नहीं हो पाए तो उनके पास मुंबई जैसे महानगरी में गुज़ारा करने के लिए उनकी नौकरी रहेगी.
आँखों में सपने लिए किया मुंबई का रुख
पिताजी से एक्टर बनने की इजाज़त ले कर रोनित रॉय ने ख़ुशी-ख़ुशी मुंबई का रुख किया. मुंबई पहुचते ही सबसे पहले रोनित रॉय ने अपने पिताजी के कहने के अनुसार “सी रॉक होटल” में वेटर की नौकरी ले ली. इस सफ़र में उनका साथ दिया सुभाष घई ने जिन्होंने रोनित रॉय को अपने घर में आसरा दिया. होटल में भी फ़िल्मी सितारों का आना जाना लगा रहता था जिन्हें देख कर उनके सपने उन्हें और चुभने लगे. अपने पिताजी के कहने पर उन्होंने अपनी नौकरी जारी रखी मगर आँखों में सपने थे, आत्मविश्वास भी था, लेकिन इंतज़ार था तो वो एक लम्हें का जब कोई नामचीन डायरेक्टर उनके पास आए और उनको अपने फिल्म के लिए साइन कर ले. कैमरे के सामने आने की लालसा, डायलाग बोलने का जूनून, चाहने वालों की लम्बी कतार जो उनसे उनका ऑटोग्राफ मांगते, ऐसे कई सपने वो अपनी सोती और जागती आँखों से हर वक़्त देखते थे. लेकिन अभी तो सिर्फ शुरुआत हुई थी. मुंबई शहर ने उन्हें ऐसा दौर दिखाया जो कभी किसी ने सपने में भी न सोचा होगा.
…जब छूट गया पिताजी का साथ
रोनित रॉय की जिंदगी में पहला दुःख का पहाड़ तब टूटा जब इस सफ़र में उनके पिता जी ने उनका साथ बीच में ही छोड़ दिया. उन दिनों रोनित रॉय के पिताजी उनसे मिलने मुंबई पहुंचे और अपने मित्र सुभाष घई के यहा गए जहाँ रोनित रहा करते थे. रोनित ने अपने पिताजी से मुलाकात की, कुछ बातें की और होटल चले गए. लेकिन उसी दिन उन्हें यह दुखद समाचार मिला के उनके पिताजी की मौत हार्ट अटैक से उसी दोपहर को उनके कमरे में हो चुकी थी. इस हादसे ने उन्हें झकझोर कर रख दिया था. अचानक से पिताजी का साथ छुट जाना किसी भारी सदमे में कम नहीं था. उन्होंने किसी तरह से खुद को संभाला और वापिस अपनी नौकरी की ओर रुख किया. मुंबई में अब उन्हें दो साल हो गए थे. ऐसे कई पल आये जब उन्हें अपना सपना टूटता हुआ नज़र आया, हिम्मत परस्त होता दिखाई दिया, लेकिन कहते है ना जब बावरा मन फैसला कर लेता है के उसे वो मुकाम हासिल करना ही है, तो कदम भी खुद-ब-खुद ही आगे बढ़ जाते है. एक दिन वह हर रोज़ की तरह अपने होटल जाने के लिए निकले लेकिन उनके कदमो ने दिशा बदल दी और होटल के बजाए एक समुन्द्र किनारे जा बैठे और गहरे सोच में पड़ गए. मन में पिताजी को खोने का दुःख था, एक वेटर की नौकरी से आगे बढ़ने की लालसा थी मगर रास्ते सिमित थे. उस दिन उन्होंने अपनी जिंदगी का एक अहम् फैसला लिया और अपनी नौकरी छोड़ दी. वह होटल नहीं गए और सुभाष घई के साथ अपने करियर को आगे बढ़ाने का फैसला लिया.
कैसे हुई कुनाल कपूर से मुलाकात? कैसे रोनित बने अपने पहले फिल्म से सुपरस्टार?
मशहूर डायरेक्टर सुभाष घई के साथ भी सफ़र इतना आसन नहीं रहा. रोनित रॉय उनके असिस्टेंट के भी असिस्टेंट थे जिसके तहत उन्हें फिल्मों के सेट पर उन्हें कभी-कभी किसी स्पॉट बॉय या नौकरों जैसा व्यवहार भी झेलना पड़ा. आगे बढ़ने के रास्ते नज़र नहीं आ रहे थे और एक दिन कुछ ऐसा हुआ के रोनित रॉय को सुभाष घई के कड़वे लफ़्ज़ों का सामना करना पड़ा. यह बात तब की है जब एक वक़्त रोनित रॉय सेट पर अपना सारा काम खत्म कर के माधुरी दीक्षित को उनका सीन समझा रहे थे. यह देख कर सुभाष घई ने उन्हें बहुत डाटा और खरी-खोटी सुनाई. रोनित ने अपनी सफाई में कहा के उन्होंने ही बोला था के जब तुम्हारे सारे काम खत्म हो जाये तो सेट पर दुसरे लोगो की मदद करनी चाहिए, और वो वही कर रहे थे. रोनित रॉय इन कड़े लफ्जों से बहुत दुखी हुए. उन्होंने सोचा के इस तरह से वो कभी आगे नहीं बढ़ पायेंगे. तब उन्होंने एडवरटाइजिंग की तरफ रुख किया, जहा वो विज्ञापनों के लिए मॉडलिंग करते और उन्हें एडिट भी करते थे. यहाँ उनकी मुलाकात हुई सशि कपूर के बेटे कुनाल कपूर से. कुनाल कपूर और रोनित रॉय की अच्छी दोस्ती हो गई और उनकी मदद से रोनित रॉय को 1992 में मिली उनकी पहली फिल्म “जान तेरे नाम” जिसने बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड तो बनाए ही उसके साथ साथ रोनित रॉय को भी रातों-रात वो शोहरत दिलाई जिसके सपने वो तीन सालों से देख रहे थे. इसकी गीत “अक्खा इंडिया जानता है” और “कल कॉलेज बंद हो जायेगा” बहुत मशहूर हुआ.

सपनों की उड़ान हुई धीमी! नहीं कर पाये “परदेस” फिल्म में काम
रोनित रॉय की पहली फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा दिया था और उन्हें कई सपने दिखाये जैसे की बड़ी गाड़ियाँ, मेहेंगे फ्लैट्स, और अन्य सुख-सुविधाएं, मगर किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था. संघर्ष खत्म नहीं हुआ था. इसके बाद रोनित ने कई फिल्मे की जैसे “जुरमाना”, “जय माँ वैष्णोदेवी”, “रॉक डांसर” और “बोम ब्लास्ट” जो हिट होना तो दूर, सामान बिज़नस भी नहीं कर पाई. यह वो दौर था जब रोनित रॉय के साथ कोई डायरेक्टर काम नहीं करना चाहते थे और उनके हाथ में कोई फिल्म नहीं थी. उन दिनों सुभाष घई एक फिल्म बना रहे थे “परदेस” जिसके मुख्य अभिनेता थे शाहरुख़ खान और जब दुसरे अभिनेता के चयन की बारी आई तो सभी को लगा के रोनित रॉय ही सुभाष घई की पहली पसंद होंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उनके किरदार को निभाया अपूर्व अघिनोत्री ने. उस दिन रोनित रॉय को बहुत बुरा लगा क्युकी अपनी पिताजी के देहांत के बाद वो सुभाष घई को ही अपने पिता सामान मानते थे और जब उन्हें उनकी सबसे जादा ज़रूरत थी तभी वो उनका साथ नहीं दे पाए. परदेस फिल्म से बहार होने के बाद उनका करियर पूरी तरह से ध्वस्त हो गया. फिल्में तो दूर अब उनकी निजी जिंदगी पर भी असर पड़ने लगा. रोनित रॉय ने अपने गम का एकलौता सहारा शराब की बोतल में ढूँढा और वो बहुत पीने लगे. इसकी अंजाम ये हुआ के उनकी पत्नी और उनकी बेटी ने उनका साथ छोड़ दिया और अमेरिका के लिए रवाना हो गए.
भाई ने की मदद! रोहित रॉय ने मुश्किल घडी में दिया साथ
मुश्किल के इस घडी में जो शख्स उनके मदद को सामने आया वह थे उनके छोटे भाई रोहित रॉय. अब उनके भाई को साथ देने की बारी थी जिसे रोनित रॉय ने उनके बुरे समय में साथ दिया था. उनकी धारावाहिक स्वाभिमान उस वक़्त बहुचर्चित थी जिसके वजह से वो अपने एक अच्छी जिंदगी जी रहे थे. उन्होंने अपने भाई का हर हाल में साथ दिया, उन्हें हिम्मत दी, उन्हें सहारा दिया, और इस जंग से लड़ने के लिए प्रेरणा भी दी.

रोनित रॉय की हालत कुछ ऐसी थी के जब भी उन्हें अकेले मन नहीं लगता तो वह अपने घर से चार किलोमीटर दूर चल कर रोहित रॉय के घर जाते थे और खाना खा कर वापस चार किलोमीटर चल कर अपने घर आते थे. एक समय के बाद उन्हें बहुत गिल्ट महसूस हुआ और उन्होंने वहा जाना छोड़ दिया. अब हाथ में कोई काम नहीं था, परिवार बिखर चुका था, यहाँ तक के खाने के लिए भी पैसे नहीं थे. इन दोनों रोनित रॉय दो पाव लेते थे और उसे पानी में डूबा देते थे ताकि वो फुल जाये और फिर उसे चबा कर खाने में आसानी हो. ऐसा उन्होंने कई महीनों तक किया.

जब जीतेंद्र ने दी जिंदगी की सबसे बड़ी सीख! कैसे बने रोनित रॉय एक बॉडीगार्ड
अपने जिंदगी के कठिन दिनों में एक बार उनकी मुलाकात मशहूर फिल्म अभिनेता “जीतेंद्र” से हुई. बातों-बातों में उन्होंने रोनित रॉय को एक बड़ी सीख दी. उन्होंने कहा- “तुम कभी सीढ़ी मत चढ़ना. सीढ़ी अगर तुम्हे ऊपर की ओर ले जाती है तो वह सीढ़ी तुम्हे कभी भी सीधा नीचे गिरा सकती है. तुम एक पेड़ बनना और अपनी जड़े फैलाना जिससे अगर एक तरफ का रास्ता बंद भी हो जाये तो तुम्हारी ग्रोथ दूसरी तरफ से होती रहेगी, तुम्हे फैलने से कोई नहीं रोक पायेगा.” इन शब्दों ने रोनित रॉय को प्रेरणा दी और उन्होंने एक छोटा बिज़नेस शुरू किया. यह था सिक्यूरिटी बॉडीगार्ड का. जब उन्होंने अपनी कंपनी की शुरुआत की तो कई बार उन्होंने खुद बाउंसर का काम उन सितारों के लिए किया जिनके साथ एक समय उनका उठना-बैठना होता था. आलम ये हुआ के उन्होंने कई ऐसे सितारों के बॉडीगार्ड का काम किया जो उनके फैन थे और जिन्होंने एक समय लाइन में लग कर उनसे उनका ऑटोग्राफ माँगा था. इस तरह से उन्होंने अपना यह बिज़नेस खड़ा किया जब उनकी एक्टिंग ने भी उनका साथ छोड़ दिया था.
कसौटी जिंदगी की में बने मिस्टर रिषभ बजाज!
इतने संघर्षो के दौरान एक पार्टी में उनकी मुलाकात जीतेन्द्र की बेटी एकता कपूर से हुई जिन्होंने उन्हें अपनी सीरियल कसौटी जिंदगी के मशहूर किरदार मिस्टर रिषभ बजाज की तलाश में थी. इस किरदार के लिए उन्होंने रोनित रॉय को कास्ट किया. जहाँ उस वक़्त कसौटी जिंदगी की के अन्य सितारें जैसे श्वेता तिवारी और सेज़ान खान तीन से चार हज़ार रुपये प्रति एपिसोड की फीस पर काम कर रहे थे, वही रोनित रॉय को एक एपिसोड के लिए मात्र 250 रुपये दिए जाते थे. जो मिस्टर बजाज धारावाहिक में 300 करोड़, 500 करोड़ की बिज़नेस डील करते हुए नज़र आते थे, असल में उन्हें एक एपिसोड के सिर्फ 250 रुपये मिलते थे. एकता कपूर ने इस किरदार को कुछ ही समय के लिए सीरियल की कहानी में रखा था मगर जनता को यह किरदार इतना पसंद आया के मिस्टर बजाज सब के पसंदीदा हो चुके थे. उन्होंने अपना अभिनय का लोहा मनवा लिया था जिसके बाद उन्हें टेलीविज़न के सबसे बड़े किरदार “मिहिर वीरानी” का रोल मिला जिसके बाद पीछे मुड कर देखने का वक़्त न मिला. इस किरदार को पहले अमर उपाध्याय और इंदर कुमार ने भी निभाया था. सीरियल में अभिनय करते-करते 2002 से 2008 कब बीत गया, उन्हें पता भी न चला. इनकी लोकप्रियता इतनी बढ़ी के इसी दौरान उन्होंने एक फिल्म में काम किया. यह फिल्म थी अनुराग कश्यप की “उड़ान” जिसके लिए उन्हें “Best Supporting Actor” के ख़िताब से नवाज़ा गया.
जब अदालत की सीढियां चढ़े रोनित रॉय! हुई अच्छे दिनों की शुरुआत
मशहूर वकील के.डी. पाठक को कौन नहीं जानता. यह वो है जिन्होंने आज तक कोई केस नहीं हारा. जी हाँ! सोनी टीवी के धारावाहिक अदालत ने रोनित रॉय के अभिनय से कुछ ऐसी शोहरत बटोरी के जो रोनित रॉय ने कभी 250 रुपये प्रति एपिसोड पर काम शुरू किया था, उन्हें अब इस धारावाहिक के लिए डेढ़ लाख रुपये प्रति एपिसोड मिलते थे. इसके लिए उन्होंने कई पापड़ बेले. जिस रोनित रॉय को एक वक़्त खाने के लिए भी पैसे नहीं थे उन्होंने अब अपनी जिंदगी की पटरी को फिर से शुरू किया और वो सब कुछ हासिल किया जिसके वो हक़दार थे. आज उनकी खुद की सिक्यूरिटी कंपनी है जो स्टार्स को सिक्यूरिटी गार्ड्स देते है और उनका यह बिज़नेस भी चल पड़ा जिसके उपरांत उनके अच्छे दिन फिर से शुरू हो गए.
कोविड-19 में उठाया 100 परिवारों की ज़िम्मेदारी
इस वक्त पूरी दुनिया कोरोना वायरस के चपेट में है और भारत भी इससे अछुता नहीं है. समाज के हर वर्ग को किसी न किसी रूप से आर्थिक छति पहुची है. ऐसे में रोनित रॉय ने अपने कंपनी के 100 कर्मचारियों के परिवारों की ज़िम्मेदारी ली है. उनका कहना है की जनवरी 2020 से उन्हें कोई भी प्रोडक्शन हाउस से उन्हें पेमेंट नहीं मिला है लेकिन वो अपने कंपनी के करमचारियों को इस महामारी में अकेले नहीं छोड़ सकते. उन्होंने 100 परिवारों की ज़िम्मेदारी उठाई है जिसके लिए उन्हें अपने घर का कुछ सामन बेचना पड़ा है. उन्होंने कई प्रोडक्शन हाउस से गुज़ारिश की है के वो सभी अपने आर्टिस्ट और वहा काम करने वाले सभी कर्मचारी की मदद करे और उन्हें उनका मेहनताना समय पर दे ताकि इस महामारी में वो सुकुन से रह सके और उन्हें किसी तरह की आर्थिक परेशानी न हो.

Ronit Roy with his wife Neelam Singh

जिस रोनित रॉय ने अपनी जिंदगी में इतने अंधेरों का सामना किया है और उनसे लड़ कर अपने रास्ते खुद बनाए, वह हमें प्रेरणा देता है की अँधेरा चाहे कितना भी गहरा हो, काले बादल चाहे कितने भी गहराए, मगर जिंदगी में उम्मीद, धैर्य और मेहनत का दामन कभी नहीं छोडना चाहिए. अगर बुरा वक़्त कभी आपको घेरे और कुछ नज़र न आए, कोई उपाए न सूझे, रास्ते न दिखे, तो उस वक़्त को कुछ पल के लिए विधाता की मर्ज़ी ज़रूर माने मगर अपने विश्वास और प्रयत्न का दिया हमेशा अपने अन्दर जलाये रखे. हर बुरा वक़्त कट जाता है और नया सवेरा आपके स्वागत में खड़ा रहता है. किसी ने सच ही कहा है- “जिंदगी इम्तहान लेती है”.

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