इन दिनों चर्चा है के उत्तर प्रदेश में योगी जी की सरकार ‘फ़िल्म सिटी ‘ का निर्माण करेगी । क्या ये कोई नया कदम होगा, नई पहल होगी? अब इस पर कई लोगों ने अपनी खुशी जाहिर की है, बॉलीवुड अभिनेता तनवीर ज़ैदी जिनकी फिल्में ग़ारजीयन, काहे गए परदेस पिया, इश्क़ समंदर, ये जीवन है आदि के काफी पोरशन्स उत्तर प्रदेश में शूट किए जा चुके हैं, उनका लिखा गया ये लेख पाठकों के लिए प्रस्तुत है ।
“मैं सरकार के इस प्रयास और मनसूबे की आलोचना नहीं करना चाहता बल्कि प्रशंसा करूँगा किन्तु मुझे जो सन्देह है उसपर भी अवश्य चर्चा करना चाहूंगा। मुझे और मेरे कई फिल्मी साथियों को समझ नहीं आयी ये फिल्मसिटी बनवाने की योजना। क्योंकि उत्तर प्रदेश में पहले से एक फ़िल्म सिटी मौजूद है, और उसका हाल ठीक नहीं है….”
फिल्मीनिज्म (Filmynism) से बातचीत में फ़िल्म अभिनेता तनवीर ज़ैदी कहते है- केवल टीवी के कुछ शोज़ और लोकल म्यूजिक वीडिओज़ के अतिरिक्त वहां कुछ विशेष शूट नहीं होता। ये सभी जानते हैं। वैसे भी इस प्रदेश में समय समय पर सरकार द्वारा फ़िल्म उद्द्योग से जुड़ी कई योजनाएं बनाई गयीं जैसे निर्माताओं को वित्ति सहायता प्रदान किया जाना किन्तु इसका लाभ कुछ चन्द विशेष लोगों को ही मिला। ज़रा मालूम तो कीजिये नोएडा में बनी फिल्म सिटी का क्या हाल है? कलाकारों को अभिनय में पारंगत करने वाला लखनऊ में बने संस्थान ‘बी एन ए’ की भी हालत देख लीजिये, इलाहाबाद, प्रयाग राज के चल चित्र केंद्र जबकि यहां फिल्मांकन की सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं इसकी भी जानकारी ले लीजिए इन सभी स्थलों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं उपलब्ध कराई गयीं थीं।’
जैदी ने कहना है – आज उनका हश्र देखकर दुख होता है, काश के इन संस्थानों को सरकार द्वारा पहले रिवाइव किया जाता तो बहुत बेहतर होता और फिर किसी नई फिल्मसिटी की योजना बनती तो ठीक होता। फिर एक और प्रश्न कि ये फिल्मसिटी आखिर होती क्या है? अभी तक जो फ़िल्मसिटी देश में है उनको देखते हुवे तो यही कहा जा सकता है के फ़िल्मसिटी वो सथल है जहां प्रोडक्शन हाउसेज़ को कई बने बनाये सेट्स जैसे नक़ली पुलिस स्टेशन, हस्पताल,जुग्गी झोपड़ियां, बाग़ बगीचे आदि उपलब्ध होते हैं और साथ ही कुछ खुले स्थान भी होते हैं जहां निर्माता इच्छानुसार अपने सेट्स बनवाकर शूटिंग कर सकते हैं। क्या उत्तर प्रदेश को एक और फिल्मसिटी की आवश्यकता है?
उन्होंने आगे कहा – चलिये मान लेता हूं कि बेहतर सुविधाओं की आवश्यकता है। तो एक बात जान लीजिये कि उत्तर प्रदेश में लगातार शूटिंग्स पहले भी होती रही हैं। जो निर्माता मुम्बई से जाकर लखनऊ, प्रयाग राज/इलाहाबाद, बनारस, आगरा, कानपुर आदि शहरों में इसलिए शूटिंग करते हैं कि इन शहरों में उन्हें नेचुरल लोकेशन्स संगम, नदियां, झरने, पहाड़, घाट, मन्दिर, गलियां, चौबारा, स्कूल, कॉलेज, विश्विद्यालय आदि में आसानी से फ़िल्म बनाने के लिए उपलब्ध रहते हैं, निर्माता/निर्देशकों को वास्तविक स्थलों पर फिल्मांकन के अवसर मिलते रहै हैं और साथ ही पर्यटन मंत्रालय, प्रदेश के पर्यटकों को आकर्षित करने हेतु प्रदेश के विभिन्न पर्यटक स्थलों को कैमरे में क़ैद के बदले वित्तीय सहायता देता है ऐसी पर्यटन मंत्रालय की एक योजना भी है, तो क्या ऐसे में निर्माता मुम्बई फिल्मसिटी और स्टूडियोज़ के बजाए उत्तर प्रदेश की वास्तविक लोकेशन्स छोड़कर फ़िल्मसिटी के अंदर क़ैद होकर नक़ली बने सेट्स पर शूटिंग करने उत्तर प्रदेश जाएंगे ? मुझे सन्देह है क्योंकि इसमें न तो टूरिज़्म डिपार्टमेंट को कोई लाभ होगा, न निर्माताओं को कुछ विशेष मीलेगा। और जो निर्माता उप में मुफ्त में वास्तविक लोकेशन्स अपने कैमरे में कैद करते आये हैं वे उत्तर प्रदेश की फिल्मसिटी में भाड़ा देकर शूटिंग क्यों करना चाहेंगे?
उन्होंने आगे कहा – निर्माता उत्तरप्रदेश के बनारस के घाट, इलाहाबाद के संगम, लखनऊ की नवाबी संस्कृति, उन शहरों की गलियां, मकान, स्कूल, कॉलेज, विश्विद्यालय को कैमरे में क़ैद करने जाते हैं किसी स्टूडियो या फिल्मसिटी में क़ैद होकर नक़ली स्थलों पर शूटिंग करने नहीं। आप ही सोचिये कि क्या वे इस नई फिल्मसिटी में शूटिंग करने जाएंगे? बिल्कुल नहीं। सैकड़ों फिल्में उत्तर प्रदेश में शूट होती रहीं हैं ,उन फिल्मों के निर्माताओं को कथा अनुरूप, उनकी मनपसन्द लोकेशन्स उत्तर प्रदेश में मिलती रहीं हैं। सरकार को एक सर्वे करना चाहिए कि क्या वे उत्तर प्रदेश की फिल्मसिटी में शूट करने को लोग बाग इच्छुक/उत्सुक होंगे? फिल्मसिटी बनेगी तो प्रदेश के लोगों के धन से ही बनेगी। क्या नई फिल्मसिटी बनाने में लगा धन सरकार के पास वापस आएगा या नहीं? मुझे इसमें सन्देह है।