फिल्मों में ‘गांव-जवार’ की बात चले और उसमें फुलेरा ‘पंचायत’ का जिक्र न हो, अब शायद ऐसा नहीं होगा। पिछले दिनों रिलीज हुई वेबसीरीज ‘पंचायत’ का सीजन टू (Panchayat Season 2) सफलता के नये आयाम गढ़ रहा है। इस सीजन की कहानी से लेकर कलाकारों की एक्टिंग तक की तारीफ हो रही है। गुलाल, तीन पत्ती, ब्लैक फ्राइडे, अनवर, माॅनसून वेडिंग, कंपनी आदि फिल्मों में अपने शानदार अभिनय के लिए जाने वाले पंकज झा (Pankaj Jha) ने इस सीरीज में विधायक चंद्र किशोर सिंह का किरदार निभाया है। आज हम जानेंगे उनके बारे में, उनकी अब तक की जर्नी के बारे में।
बिहार के सहरसा से ताल्लुक रखने वाले पंकज झा आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। ‘पंचायत’ सीजन टू की इस सफलता के पीछे कहीं न कहीं इनकी शानदार एक्टिंग भी है। अब तक दर्जनों बेहतरीन फिल्मों व निर्देशकों के साथ काम कर चुके अभिनेता पंकज झा ने संजीत मिश्रा के साथ बातचीत में बड़ी साफगोई से सहरसा से मुंबई तक की अपनी जर्नी के बारे में बताया। बता दें कि पंकज झा सोनी लिव पर आ रही ‘निर्मल पाठक की घरवापसी’ में भी एक मजबूत किरदार में दिखेंगे, जो 27 मई को रिलीज हो रही है।
‘अनवर‘ के पांडे हों या ‘कंपनी‘ के ‘अनीस’ हों, ‘मॉनसून वेडिंग’ वाले अपने ‘यादव’ जी’ हों या फिर गुलाल’ वाले ‘जधवाल’। यह वही शख्स है, जिसने ‘पंचायत 2’ में विधायक चंद्र किशोर सिंह का किरदार निभाकर सबका दिल जीत लिया है। एक्टिंग इतनी शानदार कि आम दर्शक से लेकर फिल्म क्रिटिक तक की तारीफें मिल रही हैं।
बिहार के सहरसा जिले के मुरादपुर गांव में जन्मे पंकज झा को बचपन से ही गांव में रहना अच्छा लगता था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा सहरसा में हुई। वे कहते हैं कि मुझे पढने में बिल्कुल भी मन नहीं लगता था, लगता था जैसे कोई भारी-भरकम काम थमा दिया गया है। हालांकि पेंटिंग का मुझे बहुत शौक था, सो वह स्कूल के दिनों में ही पढ़ते-पढ़ते अपने शिक्षक का भी स्केच बना लिया करते थे। धीरे-धीरे सबको लगने लगा कि यह चित्रकार बनेगा। मेरी इस कला को उनके घर के लोगों ने समझा और आगे की पढाई के लिए पटना भेज दिया। उनके शिक्षक के सुझाव पर ही उन्हें पटना आर्ट कॉलेज में एडमिशन करवाया गया, जहां उन्होंने पेंटिंग की बारीकियां सीखीं। पंकज कहते हैं कि कि मेरे बनाये हुए स्केच विभिन्न अखबारों जैसे नवभारत टाइम्स, आज, हिंदुस्तान आदि में छपने लगे। उनके इलस्ट्रेशन प्रसिद्ध मैगजीन हंस में भी छपे। पंकज कहते हैं कि मैं नाटक व रंगमंच में शुरू से ही एक्टिव था। सहरसा से पटना तक यह सफर जारी रहा। पटना से दिल्ली आया और वहां नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में के रंगमंच में डायरेक्ट एडमिशन हुआ और फिर यहीं से सही मायने में मेरी एक्टिंग का कॅरियर शुरू हुआ।
पंकज झा कहते हैं कि दिल्ली में पांच-छह साल रहने के दौरान कई डायरेक्टर एक्टर से पहचान हुई और कुछ-कुछ करते हैं। इसी दौरान मीरा नायर की फिल्म मिली माॅनसून वेडिंग और फिर उसके बाद फिर मेरे पास लगातार फिल्में आने लगीं। रामगोपाल वर्मा, सुधीर मिश्रा, मनीष झा आदि मिलते गए और मुझे अच्छी-अच्छी फिल्में मिलती चली गईं।
सिनेमा के बदलते स्वरूप पर पंकज झा कहते हैं कि अभी के समय में फिल्मों को दो भागों में बांट सकते हैं। पहला कोरोना से पहले, दूसरा कोरोना के बाद। कोरोना से पहले की फिल्मों में झूठ, फरेब और दिखावे का बोलबाला था, वहीं कोरोना के बाद वाली फिल्में में सच्चाई, अपनापन व रियलिटी की झलक दिखती है। ‘पंचायत’ को भी इसी फेज की उपज कह सकते हैं। ऐसा कह सकते हैं कि मायावी दुनिया में जीने की लालसा व आदत को कोरोना ने रोक दिया है।
‘पंचायत’ के सीजन दो में अपने किरदार एलएलए चंद्र किशोर सिंह के बारे में पंकज मिश्रा कहते हैं कि मुझे जो रोल दिया गया, उसे मैंने पूरी तरह से निभाने की कोशिश की। लोगों को मेरा किरदार इसलिए इतना पसंद आ रहा है, क्योंकि मैं सिर्फ एक्टिंग ही नहीं करता हूं, उस किरदार को जीता हूं। विधायक एलएलए चंद्र किशोर सिंह का कद्दू और कटहल से कनेक्शन पर हंसते हुए पंकज कहते हैं कि मेरा कोई कनेक्शन नहीं है। प्रधान जी लेकर आए और मैंने रख लिया, यह बस सीन है।
अभिनेता पंकज झा कहते हैं कि मैं मिथिला का रहने वाला हूं, इसलिए मुझे मिथिला के लिए कुछ करना था। इसी दौरान मेरे पास मैथिली फिल्म ‘मिथिला मखान’ के डायरेक्टर ने संपर्क किया और उससे सुनने के बाद मैंने हां कह दिया। मेरी वजह से ही इस फिल्म को नेशनल अवाॅर्ड मिला। वे कहते हैं कि मिथिला को वैसी पहचान नहीं मिल पाई है, जैसी मिलनी चाहिए थी। भोजपुरी फिल्में करने के सवाल पर बेबाकी से पंकज झा ने कहा कि मैं बेशक कर सकता हूं, पर पहलेे मैं यह जरूर देखूंगा कि फिल्म किस डायरेक्टर की है और कैसी कहानी है। कोई भी कहानी या किसी भी डायरेक्टर के साथ भोजपुरी फिल्में नहीं कर पाउंगा। क्योंकि अब तक मैंने जो भी फिल्में की हैं, बेहतरीन डायरेक्टर व कहानी के दम पर ही किया हूं।
बाॅलीवुड व टीवी में बिहार के कलाकारों की भरमार है। बिहारी चेहरों के आपस में रिश्तों की बात पर पंकज झा कहते हैं ऐसा कुछ नहीं है यहां। सब अपने को ही साबित करने और दिखाने में लगे हैं। हर कोई सिर्फ और सिर्फ मैं के आगे-पीछे घूम रहा है। बिहार या बिहार के बारे में अच्छा बोलने वाले बस बोलते हैं, सच्चाई इससे कोसों इतर है। कोई किसी दूसरे के बारे में नहीं सोचता है, यहां सबको अपनी पड़ी है।
‘आने वाले दिनों में किस तरह का किरदार निभाना चाहेंगे’ पूछने पर पंकज झा कहते हैं कि अब तक मैं कई तरह के किरदार निभा चुका हूं। अब तक मेरा मैक्सिसम रोल स्टांग किस्म का रहा है। एक सीरीयल आई थी काशी, उसमें एक पोस्टमैन था, जो बहुत इमोशनल था, ग्राउंडेड था। साइकिल से चलता था, प्यार फैलाता था। मैं उसी तरह के प्यार व इमोशनल वाला कैरेक्टर करना चाहूंगा।
भोजपुरी फिल्मों में अश्लीलता पर पंकज झा कहते हैं कि अश्लीलता फिल्में नहीं फैलाती हैं, लोग देखते हैं तभी ऐसी फिल्में बनती हैं। और ऐसे भी अश्लील फिल्मों या कहानी के लिए हम किसी एक एक्टर या डायरेक्टर को दोषी नहीं ठहरा सकते। उन्होंने कहा कि मेरी नजर में ऐसी फिल्में बनाने वालों का दोष नहीं है। लोग देखते हैं तभी ऐसी फिल्में बनाई जाती हैं।
‘महारानी‘ के मेकर्स नरेन कुमार और महेश कोराडे की अपकमिंग सीरीज ‘निर्मल पाठक की घर वापसी’ सोनी लिव पर 27 मई से स्ट्रीम हो रही है। इसका निर्देशन राहुल पांडे और सतीश नायर ने किया है। इसकी कहानी बिहार के एक छोटे-से कस्बे की पृष्ठभूमि पर आधारित एक युवा उपन्यासकार निर्मल पाठक की है, जो 24 साल बाद अपने गृहनगर लौटा है। पंकज झा इसमें माखनलाल चाचा बने हैं। टीजर के एक सीन में वे निर्मल से कहते हैं “अशुद्ध कर दिए, पूरा लेपना पड़ेगा यहां पर“, सुनकर आप समझ जाएंगे कि यह शो कितना शानदार हो वाला है। पंकज झा कहते हैं कि यह शो ऐसे कई सवालों के जवाब देता है, जिन्हें आज के युवा भागदौड़ भरे शहरी जीवन में नजरअंदाज कर रहे हैं। आज की दौड़ती-भागती दुनिया में, जहाँ युवाओं को केवल अपनी पहचान बनाना सिखाया जाता है, अपने परिवार की ही उपेक्षा होने लगती है, जो हमें असल में वह बनाता है, जो हम हैं। यह सीरीज उस इंसान की कहानी है जो अपने अस्तित्व को खोज रहा है।