बाॅलीवुड के सफल व लीक से हटकर अभिनय करने वाले जमीन से जुड़े अभिनेता इरफान (Irrfan) का जाना जब पूरी दुनिया अपना जाती नुकसान मान रही है, तब मैं इसे एक परिवार का बयान किस तरह लिखूं? इस पूरे वक्त में जब लाखों-लाख लोग हमारे दुख में साथ हैं, मैं अकेलेपन का अहसास क्यों लाऊं? मैं आप सबको यकीन दिलाती हूं कि मैंने कुछ खोया नहीं है, बल्कि हासिल किया है। यह कहना है इरफान के संघर्ष के दिनों का साथी रहीं उनकी पत्नी सुतापा सिकदर (Sutapa Sikdar) का।
पति के असामयिक निधन के बाद सुतापा (Sutapa Sikdar) ने एक चिट्ठी लिखी, जिसे हर किसी को पढ़ना चाहिए। अपने खत में सुतापा ने लिखा है कि मैंने कुछ नहीं खोया है, बस हासिल किया है। हमने वह हासिल किया है, जो इरफान ने हमें सिखाया और अब जबकि वह नहीं हैं तो उस सीख को हमें सच में अपनाना है और उसे आगे बढ़ाना है। मैं चाहती हूं कि आप लोग वह भी जानें, जो आप (इरफान के बारे में) इससे पहले नहीं जानते रहे हैं। हमारे लिए यह अविश्वसनीय है, लेकिन अगर इसे इरफान के शब्दों में कहूं तो यह ‘जादुई’ है कि वह वहां (यहां) है भी और नहीं भी। …और यह भी कि उसने किसे प्यार किया। सच तो यह है कि उसने कभी भी एक खास ढर्रे में प्रेम नहीं किया। मुझे उससे सिर्फ इतनी-सी शिकायत है कि उसने उम्रभर के लिए मुझे अपनी जद में ले लिया है। चीजों को देखने का उसका नजरिया बहुत खास था। वह इसके लिए हमेशा जोर देता था और यही वजह है कि अब मैं किसी चीज को सामान्य ढंग से नहीं सोच पाती। वह हर चीज में एक लय देखता था। शोर-शराबे में भी। यहां तक कि अराजकता में भी। इसलिए मैं उसकी लय के संगीत में नाचती रही, गाती रही, बावजूद इसके कि मेरी आवाज बहुत कर्कश है। बावजूद इसके कि मेरे कदमों की थिरक बेमेल है।
हमारी लाइफ अभिनय की एक मास्टर क्लास थी, सो एक दिन एक बिन बुलाए मेहमान ने इसमें बहुत नाटकीय ढंग से दस्तक दी। इस सबने एक कोलाहल पैदा किया फिर इस कोलाहल से लय किस तरह बिठाई जाए, यह मैंने (इरफान से) सीखा था। डाॅक्टरों की सारी रिपोर्टें मुझे स्क्रिप्ट जैसी लगती थीं, जिन्हें मैं शानदार बना देना चाहती थी। इसलिए मैंने उन्हें बारीकी से देखना शुरू किया, ताकि जिंदगी के अभिनय में भी इरफान (Irrfan Khan) शानदार परफाॅरमेंस करें। इस सफर में हम कुछ बहुत शानदार लोगों से मिले। यह बहुत लंबी लिस्ट है, लेकिन मैं यहां कुछ लोगों के बारे में कहना चाहूंगी। मैक्स हाॅस्पिटल के हमारे आन्कोलाॅजिस्ट डाॅ. नितेश रोहतगी, जिन्होंने इस बीमारी के शुरू में ही हमारा हाथ थामा। यूके के डाॅ. डैन क्रेल और डाॅ. शिद्रावी और कोकिलाबेन अस्पताल के डाॅ. सेवंती लिमये हमारे अंधेरों में हमारी धड़कन, हमारी रोशनी बनकर आए। इस सफर को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता कि यह कितना आश्चर्यजनक था। कितना खूबसूरत और कितना तकलीक देने वाला भी।
हमारे 35 साल के साथ में पिछले ढाई साल का जो वक्फा था, उसमें हमने इरफान को कोई साज बजाने वाले वादक का किरदार निभाते देखा। इन ढाई सालों के शुरुआत, बीच और इसके चरम का जो वक्त था, वह एक साजिंदे का वक्त था, जिसके सुर वही पहचानता था। हम दोनों शादी के किसी बंधन में नहीं बंधे थे। यह 35 साल का एक साथ था, एक दोस्ती। मैं अपने छोटे से परिवार को एक नाव की मानिंद देखती हूं। जिसमें हम सब सवार हैं और अब जिसे मेरे दोनों बेटे बाबिल और अयान खे रहे हैं। वे चप्पू चलाते हुए जब राह से भटकते हैं तो इरफान उन्हें राह दिखाते हुए कहते हैं कि ‘वहां नहीं, यहां से मोड़ो’… लेकिन जिंदगी सिनेमा कहां है। इसमें कोई रीटेक नहीं होता। मैं उम्मीद करती हूं कि मेरे बच्चे परिवार की इस नाव को हर तरह के तूफान से बचाते हुए उसी तरह उस पार ले जाएंगे, जैसे उनके पिता ने उन्हें सिखाया है।
मैंने अपने बच्चों से पूछा, अगर यह संभव हो कि तुम्हें अपने पापा से कोई सबक सीखने को मिले, तो तुम क्या सीखना चाहोगे-
बाबिल: इस अनिश्चित दुनिया के खेल में समर्पण करना सीखना चाहूंगा और अपने भरोसे और इस कायनात पर ऐतबार करना…
अयान: सीखना चाहूंगा कि अपने दिमाग को किस तरह काबू में रखा जााए। क्या करूं कि दिमाग के काबू में न आऊं…