Netflix की ‘जामताड़ा’ दर्शकों से एक तरह की फिशिंग से कम नहीं
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Netflix की ‘जामताड़ा’ दर्शकों से एक तरह की फिशिंग से कम नहीं

इस साल यानी 2020 में नेटफ्लिक्स के इरादे बेहतर होते नजर नहीं आ रहें है। दरअसल नेटफ्लिक्स की हर वेब सीरीज के रिलीज से पहले खूब शोर मचाना और फिर एक कमजोर कहानी को दर्शकों के सामने रखना इनका सेट पैटर्न बनता जा रहा है।

‘जामताड़ा’ नेटफ्लिक्स के हिंदी कंटेंट पर घोस्ट स्टोरीज के बाद दर्शकों के लिए इस साल का दूसरा धोखा है। ‘जामताड़ा’ की कहानी दर्शकों से एक तरह की फिशिंग से कम नहीं है।

जामताड़ा की कहानी युवा और बाल अपराधियों की कहानी है। फोन पर लड़कियों की तरह बात करके लोगों के क्रेडिट या डेबिट कार्ड नंबर पूछना और फिर सीवीवी के अंक मांग लेना और फिर मोबाइल पर आने वाला ओटीपी। जामताड़ा के किशोरों ने दो तीन साल पहले पूरे देश के दर्जनों लोगों को ऐसे ही लूट लिया। 2020 सबको पता है किसी को अपनी सीवीवी नंबर या ओटीपी नहीं बताना ऐसे में ये बेव सीरीज आउटडेटेड है।

बुधिया सिंह बॉर्न टू रन फिल्म बना चुके सौमेंद्र पाधी की कहानी बस किशोरों के झुंड में फंसी रहती है। जामताड़ा के बारे में ये फिल्म ज्यादा कुछ नहीं बताती। भाइयों के बीच की अदावत, महिला आईपीएस की अपने ही विभाग में चलने वाली मशक्कत और एक महिला शिक्षक की इन किशोरों से मिलीभगत। ये वेब सीरीज अंत तक आते आते हांफ जाती है और देखने वाले का ठीक ठाक टाइम खराब हो चुका होता, नेटफ्लिक्स को हर महीने पैसे देने की याद आते ही मूड भी खराब होना शुरू हो चुका होता है।

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