रविशंकर उपाध्याय, पटना।
अपनी आखिरी फ़िल्म दिल बेचारा में जब यह डायलॉग सुशांत बोलते हैं तो हर बिहारी के सीधे दिल तक उतरते हैं। वह बात ही बात में ऐक्ट्रेस संजना से कहते हैं कि जमशेदपुर से हम सीधे भागलपुर जाएंगे कीजि बासु और फिल्मी मौत के सीन के पहले अपने दोस्त से फ्यूनरल भाषण बुलवाते हैं तो उसमें वह कहता है कि इस कमीने की मुस्कान इतनी कातिल है कि हमारा पूरा परिवार बिहार में रहता है तो यही परिवार बन गया।
काई पो चे से शुरू हुई उनकी फिल्मी यात्रा जब दिल बेचारा तक आखिरी पड़ाव पार करती है तब हमें महसूस होता है कि ऐसी फिल्में उन्होंने बनायी जो हर बिहारी को उनपर गर्व करने योग्य बना गयी। एक गुजराती कैरेक्टर से बिहारी बनने की यह यात्रा भी है।
सुशांत आपकी आखिरी फ़िल्म पर पूरा बिहार झूम रहा है लेकिन अफसोस कि आप नहीं हो। क्या पता कहीं आपको यह लग रहा हो कि यह आखिरी फ़िल्म साबित होने जा रही है, क्योंकि इसमें बिहारी टोन से लेकर जज्बात सबकुछ दिखाई दिया। कैंसर पीड़ित एक ऐसी लड़की के जीवन में रंग भरने की कवायद की कोशिशें भी एक बिहारी मानस को ही प्रतिबिंबित करता है जो खुद भी कैंसर से पीड़ित था। सुशांत ने अपनी फिल्मों से हमें हंसाया और रुलाया भी। एक ऐसा शून्य छोड़ गए जो शायद ही कभी भर सकेगा। अलविदा सुशांत।