‘क्लास ऑफ़ 83’ Review: मुंबई में पहले एनकाउंटर स्क्वॉड बनने की कहानी
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‘क्लास ऑफ़ 83’ Review: मुंबई में पहले एनकाउंटर स्क्वॉड बनने की कहानी

क्लास ऑफ़ 83 नेटफ्लिक्स पर 21 अगस्त को रिलीज़ हो गयी। इस फिल्म के साथ बॉबी देओल ने डिजिटल वर्ल्ड में डेब्यू किया। क्लास ऑफ़ 83 की कहानी एस. हुसैन ज़ैदी के नॉवल क्लास ऑफ़ 83- द पनिशर्स ऑफ़ मुंबई से ली गयी है। हालांकि फ़िल्म के शीर्षक से पनिशर्स ऑफ़ मुंबई हटा दिया गया है।

दरअसल ‘क्लास ऑफ़ 83’, जिसमें 80 के दौर की मुंबई और अंडरवर्ल्ड को दिखाया गया है। मुंबई की मरणासन्न मिलों के मजदूरों की ख़राब आर्थिक स्थिति और मिलों पर गिद्ध-दृष्टि जमाये बैठे बिल्डरों के उद्भव को भी कहानी में संवादों के ज़रिए छुआ गया है। सियासत और अंडरवर्ल्ड के अटूट गठजोड़ ने पुलिस महकमे के लिए उन्हें ख़त्म करना लगभग नामुमकिन बना दिया था। यह भी कह सकते हैं कि क्लास ऑफ़ 83 मुंबई में पहले एनकाउंटर स्क्वॉड के बनने की कहानी है।

बॉबी देओल विजय सिंह नाम के आईपीएस अफ़सर के किरदार में हैं, जिसे सज़ा के तौर पर पुलिस एकेडमी का डीन बनाकर भेज दिया जाता है। विजय सिंह निजी ज़िंदगी में एक हारा हुआ इंसान है। अपने परिवार से ज़्यादा अपने फ़र्ज़ को उसने प्राथमिकता दी, मगर सिस्टम ने उसे ईनाम की जगह सज़ा दी। यह अपराध बोध विजय सिंह की मनोस्थिति का हिस्सा बन चुका है। बॉबी देओल ने विजय सिंह के गिल्ट और छटपटाहट को कामयाबी के साथ पर्दे पर उकेरा है।

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