ऐसे जियूं कि कोई मलाल न रहे, कोई दाग न रहे: आलोक
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ऐसे जियूं कि कोई मलाल न रहे, कोई दाग न रहे: आलोक

Alok Dixit with Deepika and Vikrant

एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी पर मेघना गुलजार की बनाई फिल्म छपाक इन दिनों देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है। बाॅलीवुड अभिनेत्री दीपिका पादुकोण व विक्रांत मेसी अभिनीत इस फिल्म में कुछ ऐसी अनछुई बातें दिखने वाली है, जो आपको इस भयानक समाज की भयावहता पर सोचने पर मजबूर तो करेगी ही, साथ ही हिम्मत और प्यार का एक नायाब उदाहरण भी देखने को मिलेगा। एसिड अटैक पीड़िता लक्ष्मी के दोस्त आलोक दीक्षित ने अपने फेसबुक वाल पर कुछ ऐसी लाइनें लिखी हैं, जिसे आपको जरूर पढ़ना चाहिए।
मेरी जिंदगी में बहुत कुछ ऐसे होता चला गया है कि कभी कभी खुद भी यकीन नहीं होता है कि यह सब जो हो रहा है वह वास्तव में हो भी रहा है या नहीं। सालों के उतार चढ़ाव में ना जाने यह कैसी लहर बनी है कि मैं बहता जा रहा हूं, किसी एक जगह ठहर ही नहीं पाया। कभी कभी इस कायनात के प्रति बहुत कृतज्ञता महसूस करता हूं, मेरे प्रारब्ध में यह सब जिन भी वजहों से है, मुझे अब वह खूबसूरत लगता है। ऐसे लगता है कि मैं उन चंद भाग्यशाली लोगों में हूं जिनको एक रास्ता मिल गया है, मैं खुश होता हूं कि अज्ञानता में ही सही, जो भी काम मैंने खुद के लिये चुना वो मुझे भी एक सार्थक जिंदगी भी दे गया है। हमारा जीवन कितना छोटा सा होता है जिसका एक तिहाई हिस्सा तो ऐसे ही हंसते खेलते निकल जाता है और जब तक सुध आती है हम किसी न किसी आंधी में बह गए होते हैं।

ऐसे लगता है कि मैं उन चंद भाग्यशाली लोगों में हूं जिनको एक रास्ता मिल गया है, मैं खुश होता हूं कि अज्ञानता में ही सही, जो भी काम मैंने खुद के लिये चुना वो मुझे भी एक सार्थक जिंदगी भी दे गया है।

सभी की तरह ही मैं भी उड़ा, मुझे भी निगला गया, एक सागर ने निगल लिया मुझे, लेकिन मेरा रास्ता ग्रेट बैरिअर रीफ होता हुआ ऐसे ऐसे सुंदर और भयावह मुहानों और द्वीपों से गुजरा कि बस समझिये कि एडवेंचर हो गया। जब बहाव बहुत तेज था तो मैं घबराता था, बोलता था कि कहां आकर फस गया, मैं क्षोभ से सालों साल भरा रहा, लेकिन फिर वह भी हुआ जो हम सब सुनते हैं, रास्ते मुझे आहिस्ता आहिस्ता एक स्थिर गति में ले आए। मैं अब भी किनारों से मीलों दूर हूं, अब भी संमुदर पर एक छोटी कश्ती ही है मेरी, फिर भी मैं इन रास्तों पर खुद को महफूज महसूस करने लगा हूं। मैं खुश रहने लगा हूं कि जो कुछ मुझे मिल रहा है वह सब बोनस है। जो कुछ मेरे साथ हो रहा है वो मेरा किया नहीं है। मैं सही समय सही जगह रहा, मैं गलत वक्त पर गलत जगह भी रहा, मुझे लूटा भी गया और मुझे सड़क पर पड़े तोहफे भी मिले। लुटे ऐसे कि बाबा भारती, खड़गसिंह और उनके घोड़े की कहानी की तरह मेरे पास भी कुछ बचा नहीं कहने को इसके सिवा कि ऐसी कहानियां कोई न सुने। नेमतें ऐसी मिलीं कि मेरी जिंदगी में सचमुच की परियां आईं, जो मुझे बदल के चली गईं, हर रोज मुझे बदलने को मेरे साथ ही रहने लगी हैं।

मेरी मां ने एक दिन बहुत आसानी से एक बड़ी बात कह दी थी, उन्हे भी नहीं पता होगा कि उनका वो यूं ही कुछ कह देना मेरे कितने काम आया। कह गईं कि कभी कभी बहुत सालता है कि मेरी जिंदगी में इतनी उथल पुथल क्यूं है, फिर उनके मन के एक कोने में यह यकीन गहराता है कि अगर ऐसा नहीं होता तो आज उनका बेटा भी किसी खिलौने में भटका होता। मुझसे जब-जब कुछ छीना गया वो दुखी हुईं, मैं दुखी हुआ, लेकिन फिर वो छीना जाना ही मुझे कहीं और ले गया। सोचा था कि ऐसे जियूं कि कोई मलाल न रहे, कोई दाग न रहे, लेकिन क्या हुआ जो चेचक जैसे उम्र भर के धब्बे लग गए। यकीन मानिये जब ये लग गए तब मैंने इनसे डरना बंद किया। यही जीवन है। मैं यह पोस्ट खुद को कुछ साल बाद आज का दिन याद दिलाने को लिख रहा हूं। मुझे यकीन हुआ है कि जीवन और जिजीविषा इतनी जादुई है कि हर इंसान भीतर से एक योद्धा है, जब तक कुछ नहीं होता है एक डर सा लगता है, जब कुछ हो जाता है वो डर खत्म हो जाता है।

Alok Dixit with Deepika & Vikrant

मुझसे जब-जब कुछ छीना गया वो दुखी हुईं, मैं दुखी हुआ, लेकिन फिर वो छीना जाना ही मुझे कहीं और ले गया। सोचा था कि ऐसे जियूं कि कोई मलाल न रहे, कोई दाग न रहे, लेकिन क्या हुआ जो चेचक जैसे उम्र भर के धब्बे लग गए। यकीन मानिये जब ये लग गए तब मैंने इनसे डरना बंद किया। यही जीवन है।

इसे ऐसे ही समझना चाहिये, वो डर खत्म हो इसके लिये कुछ ऐसे दोस्त चाहिये होते हैं जो कहें कि वो साथ खड़े हैं। इसे ऐसे नहीं समझेंगे तो कभी भी उन कहानियों से आप कुद को रिलेट नहीं कर पाएंगे। मान लीजिये कि हम सब खुद में बहुत ताकतवर हैं, इसे किसी और में ढ़ूंढ़ने की जरूरत नहीं। स्टाॅप एसिड अटैक्स अभियान के तकरीबन दस साल भी मेरा यही भरोषा मजबूत करते हैं। मैं आज खुद को मुड़ कर देखता हूं तो लौटकर कही नहीं जाना चाहता। कोई चाह ही नहीं है जो इससे ऊपर हो, कोई राह ही नहीं है जो मुझे कहीं भटका सके। मुझे चलाने वालों इतना रहम करना कि यूं ही अपने मन और अपनी आत्मा को सुनते रह पाने की औकात मुझे देना, किसी का गुलाम मत बना देना मुझे, रोजी रोटी में मत घिस देना कहीं। यूं ही मेरा इस दुनिया में मौजूद होना किसी के काम आता रहे तो मुझे जीवन से अब और क्या चाहिये..

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