नेपोटिज्म (Nepotism) हर जगह है। यह सिर्फ बॉलीवुड में ही नहीं है। यह निश्चित रूप से कुछ लोगों की मानसिकता को प्रभावित करता है। बता दूं कि यह सिर्फ कला या अभिनय क्षेत्र में ही नहीं, हर प्रोफेशन में है। मैंने भी अपने कॅरियर में जितनी जल्दी चित्रकला में सफलता प्राप्त की, उतने ही समय में नेपोटिज्म का भी सामना करना पड़ा। यह कहना है प्रोडक्शन डिजाइनर बोइशाली सिन्हा (Boishali Sinha) का।
बोइशाली अपना अनुभव साझा करते हुए कहती हैं कि मैं अपने कला के माध्यम से हर किसी की सराहना पाती थी। मुझे याद है उस समय की एक प्रसिद्ध आर्ट गैलरी दक्षिण दिल्ली में थी, जहां हमेशा मुझे प्रदर्शन का अवसर मिलता था। परन्तु कुछ समय बाद ही नेपोटिज्म जैसी राजनीति की शिकार हो गई। जिस गैलरी में मुझे हमेशा अपने हुनर को प्रदर्शित करने के लिए अवसर दिया जाता था, वहां पर मुझे अवसर न देकर आर्ट गैलरी के संचालक वह अवसर अपने बच्चों को देते थे, क्योकि उनके बच्चों के साथ एक ही संस्थान में जुड़े हुए थे।
बोइशाली कहती हैं कि वहां संचालक कभी नहीं चाह थे कि परिवार के अलावा कोई आगे बढ़े। इन सबसे मुझे लगता है कि आपके परिजन पहले से स्थापित हैं तो उनके बच्चों का निपुण होना या सफल होना बहुत जरूरी है। परन्तु हमारे जैसी प्रतिभाओं को मौका देकर हतोत्साहित करना अपराध जैसा ही है। आप चाहे कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, किसी प्रतिभा को मारने या दबाने का कोई अधिकार नही रखते। हर किसी के पास खुद की प्रतिभा एवं बच्चे जो स्थापित हैं। आत्महत्या करने वाले माता-पिता को साबित करना होता है कल्पित बौने भी हैं।
बोइशाली कहती हैं कि मुझे लगता है कि उन्हें चीजें बड़ी आसान लगती है और वह सफलता का सम्मान नहीं करते हैं। बॉलीवुड में एक लड़की ने मेरे साथ सहायक स्तर पर काम किया था, जिससे कला निर्देशन की कोई दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन एक बड़े प्रोडक्शन डिजाइनर की बेटी होने के नाते उससे कुछ बड़े निर्देशकों के साथ काम करने का सौभाग्य मिला जैसा कि योग्य व्यक्ति उस स्तर तक पहुंचने में वर्षों तक मेहनत करना पड़ता है। किसी सक्षम पिता के पुत्र या पुत्री होने के कारण उन्हें बिना मेहनत के उस स्तर तक पहुंचने के लिए कोई समय नहीं लगता लेकिन जो व्यक्ति प्रतिभाशाली होता है उन्हें इस जगह पर पहुंचने के लिए कई वर्ष लग जाते हैं। तब उन्हें पहचान मिलती है लेकिन कुछ लोग अत्यधिक प्रतिभाशाली होने के बाद भी उन्हें कोई सफलता नहीं मिलती है और भी गुमनामी की जिंदगी में जीने को विवश होते हैं और उनके संघर्ष का किसी को पता भी नहीं चलता है।
इस कहानी से जो सही सफल होता है उसे ही इस सफलता को प्राप्त करने का अधिकार होता है क्योंकि सफलता एक ऐसी चीज है जिसका सही मायने वह सच्ची मेहनत शुरू होकर एक अच्छे परिणाम को अनुभव करने का मौका होता है। जिस प्रकार से हमने देखा कि सुशांत सिंह जैसे प्रतिभाशाली व्यक्ति कितनी मुश्किलों से सफलता की ओर आगे बढ़ते थे साथ ही साथ में शिक्षित और बहुत जानकार थे, परंतु इन सब प्रतिभा होने के बाद भी नेपोटिज्म के शिकार होकर एक रहस्य की तरह इस जीवन से अपने आप को खत्म कर दिया, जोकि किसी भी देश के लिए बहुत बड़ी क्षति की बात है।