कौन है लाल बिहारी, जो जिंदा होते हुए भी सरकारी ‘कागज’ पर ‘मृतक’ बना रहा
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कौन है लाल बिहारी, जो जिंदा होते हुए भी सरकारी ‘कागज’ पर ‘मृतक’ बना रहा

Pankaj Tripathi and Lal Bihar in Kaagaz-Filmynism

कागज (Kaagaz) का जिंदगी में बहुत बड़ा रोल है। कोरे कागज पर भी कुछ लिखा जाता है, वह इतिहास बन जाता है, कानून बन जाता है। हमारे सिस्टम कुछ भी पॉसिबल है। लाल बिहारी को ‘कागज’ पर जिंदा होते हुए भी मार दिया गया था। जी हां, सतीश कौशिक (Satish Kaushik) की फिल्म कागज का असली हीरो यूपी के आजमगढ़ (Azamgarh) का लाल बिहारी (Lal Bihari) है, जिसने अपने जिंदा होने के लिए लगभग दो दशक तक लेखापाल से पीएम तक के सामने भीख मांगनी पड़ी थी। हर किसी को एक बार जाननी चाहिए लाल बिहारी (Lal Bihari) की असली कहानी।

लाल बिहारी (Lal Bihari Mritak) का जन्म 1955 में ग्राम खलीलाबाद (Khalilabad) संजरपुर थाना निजामाबाद में हुआ था। आठ महीने की अवस्था में पिता चैथी का देहांत हो गया, जिसके बाद लाल बिहारी (Lal Bihari) की परवरिश अमिलो में हुई। बनारसी साड़ी के कारोबार में बतौर बाल श्रमिक मेहनत मजदूरी करते रहे। 21 वर्ष के हुए तो हथकरघा वास्ते मुबारकपुर स्टेट बैंक से लोन के लिए पहुंचे। पहली बार उनसे यहां पहचान के रूप में जाति प्रमाण पत्र की मांग की गई। इसके बाद प्रमाण पत्र बनवाने के लिए तहसील गए तो लेखपाल ने उन्हें दस्तावेज में मृत घोषित बताया।

 “मैं जब 20-21 साल का था, तो मैंने सोचा कि क्यों ना बनारसी साड़ी का कारखाना लगाया जाए। गांव में मेरे पिता के नाम से एक एकड़ जमीन थी जिसका वारिस मैं था। जब हम लोन लेने के लिए कागज जुटाने लगे तो पता चला कि 30 जुलाई 1976 को नायब तहसीलदार सदर, आजमगढ़ ने मुझे कागजों में मृत घोषित करके सारी जमीन मेरे चचेरे भाइयों के नाम कर दी है। बस, यहीं से मेरा संघर्ष शुरू हो गया।”लाल बिहारी

खुद को मरा हुआ जानकर लाल बिहारी (Lal Bihari) अवाक रह गए थे। इसके बाद कानून का दरवाजा खटखटाने की सोची लेकिन हिम्मत नहीं जुटा सके। जब उन्हें यह पता चला कि एक-दो नहीं, बहुतायत लोग उनकी तरह ही कागज में मृतक घोषित हैं। फिर क्या इसके बाद संघर्ष की ठान ली। राष्ट्रपति, पीएम तक पत्र लिखा। मृतक संघ का गठन किया। प्रदेश स्तर पर धरना-प्रदर्शन किया। इसका असर रहा कि विधानसभा में जगदंबिका पाल (Jagdambika Pal) ने इस मामले को उठाया। इतना ही नहीं लाल बिहारी (Lal Bihari Mritak) ने नौ सितंबर को विधानसभा में मृतक की समस्या से जुड़ी पर्ची भी फेंकी। उन्हें मारा-पीटा गया, गिरफ्तारी हुई।

लाल बिहारी ने राष्ट्रपति, पीएम तक पत्र लिखा। मृतक संघ का गठन किया। प्रदेश स्तर पर धरना-प्रदर्शन किया। इसका असर रहा कि विधानसभा में जगदंबिका पाल ने इस मामले को उठाया। इतना ही नहीं लाल बिहारी ने विधानसभा में मृतक की समस्या से जुड़ी पर्ची भी फेंकी। उन्हें मारा-पीटा गया, गिरफ्तारी हुई।

Lal Bihari Mritak

इसके बाद 1994 में तत्कालीन डीएम हौसला प्रसाद वर्मा (Hausla Prasad Vderma) ने उन्हें दस्तावेज में जिंदा घोषित कराया। जीत लाल बिहारी (Lal Bihari) की हुई पर वह स्वयं की जीत से ही संतुष्ट नहीं हुए, बल्कि अपने सरीखे अन्य साथियों को भी जिंदा करने के लिए संघर्ष जारी रखा। सैकड़ों को दस्तावेज में अब तक जिंदा करा चुके हैं लेकिन संघर्ष को अभी विराम नहीं दिया है। संघर्ष जारी है। जीवन की अंतिम यात्रा तक वह अपने सरीखे सभी साथियों को न्याय दिलाने को संकल्पबद्ध हैं। इनके सघर्ष से प्रेरित होकर सतीश कौशिक ने दस साल पहले फिल्म बनाने का फैसला किया जो अब मूर्त रूप ले चुका है।

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ऐसा नहीं था कि लोग जानते नहीं थे कि वो जिंदा हैं, लेकिन कागजी कार्रवाई में कोई पड़ना नहीं चाहता था। सब कुछ जानते हुए भी शुरू में रिश्तेदारों ने भी साथ नहीं दिया और उनकी लड़ाई लंबी होती गई। लोगों ने समझने की बजाय मेरा मजाक उड़ाना शुरू कर दिया तो मैंने ठान लिया कि अब खुद को जिंदा साबित करके ही रहूंगा।लाल बिहारी

एक बातचीत में लाल बिहारी कहते हैं कि मैंने पत्नी के नाम से विधवा पेंशन का फॉर्म भी भरा, लेकिन वह भी रिजेक्ट हो गया। लेकिन मैं तय कर चुका था कि हार नहीं मानूंगा। 1988 में इलाहाबाद से पूर्व पीएम वीपी सिंह और कांशीराम के खिलाफ चुनाव लड़ा। अब तक कुल छह बार चुनाव लड़ चुका हूं। वे कहते हैं कि लोग भले मुझे मरा हुआ समझते रहे पर मैंने ठान लिया था कि हर हाल में खुद को जिन्दा साबित करूँगा। मुझे पैसे की कोई लालसा नहीं थी, बस ये चाहता था कि किसी तरह से सरकारी कागज पर जिन्दा करार दिया जाऊं।

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