गुंजन सक्सेना-द कारगिल गर्ल Review: युद्ध की नारेबाजी नहीं, एक महिला अफसर की जांबाज़ी की कहानी
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गुंजन सक्सेना-द कारगिल गर्ल Review: युद्ध की नारेबाजी नहीं, एक महिला अफसर की जांबाज़ी की कहानी

फिल्म ‘गुंजन सक्सेना -द कारगिल गर्ल’ जो कहानी है भारत की पहली एयरफोर्स पायलट गुंजन की. फिल्म भारत पाकिस्तान के 1999 युद्ध, करगिल युद्ध की नारेबाजी नहीं है बल्कि एक महिला अफसर की परेशानी और उससे कैसे बिना भाषण बाज़ी के निपटकर गुंजन के सफल होने की कहानी है.

निर्देशक शरन शर्मा की ये पहली फिल्म है और फिल्म की कहानी को उन्होंने रोचक अंदाज़ में परोसा है. हवाई युद्ध के सीक्वेंसेस को काफी अलसियत के साथ दिखाया गया है. आम फिल्मों के वॉर सीक्वेंसेस से हटकर इस फिल्म में एयरफोर्स के काम को बहुत बारीकी लेकिन सहज अंदाज़ में दिखाया गया है.

कहानी की बात करें तो लखनऊ के एक आर्मी परिवार की बेटी की है जो बचपन से एक पायलट बनना चाहती है . उसके इस सपने में केवल उसके पिता ही उसका साथ देते हैं. पायलट वो बन नहीं पाती तो वो एयरफोर्स में अप्लाई करती है. सिलेक्शन में काफी रुकावट आती है लेकिन गुंजन सब पार करते पहुंच जाती है.

अकादमी ट्रेनिंग के लिए . यहां पर भी अपने सीनियर्स और पुरुष सहकर्मियों की उपेक्षा का सामना करके वो युद्ध के मैदान में पहुंचती है . करगिल युद्ध के दौरान फंसे हुए सैनिकों को सूझ बूझ और साहस से लाकर गुंजन को लेकर सबका दृष्टिकोण बदल जाता है.

कुल मिलकर गुंजन सक्सेना एक साफ़ सुथरी फिल्म है. जहां पर महिला के संघर्ष और करगिल युद्ध में भारत की महिला एयरफोर्स अफसर की जांबाज़ी को मनोरंजक अंदाज़ में पेश किया गया है.

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