Movie Review: ‘शिकारा’ सांप्रदायिक हिंसा के बीच पनपती एक खूबसूरत प्रेम कहानी
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Movie Review: ‘शिकारा’ सांप्रदायिक हिंसा के बीच पनपती एक खूबसूरत प्रेम कहानी

रिलीज़ से पहले काफी चर्चा में रही फिल्ममेकर विधु विनोद चोपड़ा (Vidhu Vinod Chopra) फिल्म ‘शिकारा’ कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार को एक प्यारी-सी लवस्टोरी के जरिए बताने की कोशिश की है. ये फिल्म 1990 में कश्मीरी पंडितों को आखिर कैसे रातों-रात घर से निकलने के लिए मजबूर कर दिया जाता है. फिल्म में दो नए कलाकार आदिल खान और सादिया खान नजर आ रहे हैं.

फिल्म की कहानी की बात करें तो कहानी 1989 में शुरू होती है. घाटी में रह रहे शिव कुमार धर (आदिल ख़ान) अपनी पत्नी शांति (सादिया ख़ान) के साथ खुशहाल जिंदगी जी रहा होता है. दोनों पति-पत्नी अपने घर में खुशी-खुशी रहते हैं. दोनों ने अपने घर का नाम ‘शिकारा’ रखा हुआ है. वे बड़ी मेहनत और प्यार से अपना घर सजाते हैं और उसमें रहते हैं.

कहानी थोड़ी आगे बढ़ती है. घाटी में सांप्रदायिक हिंसा बढ़ रही है और लोगों को उनके घरों से निकाला जा रहा है. कश्मीरी पंडितों को उनके घर से पलायन करने को कहा जाता है. हिंसा और मारपीट होती है और इसी बीच शिव और शांति को भी उनके घर को छोड़कर जाने के लिए कहा जाता है. ना चाहते हुए भी शिव और शांति को अपना घर रातों-रात छोड़ना पड़ता है और दोनों को 29 साल तक रिफ्यूजी कैंप में रहना पड़ता है, जिसकी वजह उस समय की सरकार को माना जाता है, जिसने उस वक्त के कश्मीरी पंडितों के दर्द को अनदेखा कर दिया.

शिव और शांति के अलावा कई कश्मीरी पंडितों के साथ यही सब किया जाता है. उनके पास दो ही रास्ते होते हैं या तो वो अपना घर छोड़ दें या फिर वहीं रहकर सांप्रदायिक हिंसा का शिकार बनें. अब ऐसे में शिव और शांति के प्यार को और बाकी कश्मीरी पंडितों के साथ उस दौर में क्या-क्या होता है, यही सब फिल्म में दिखाया गया है.

इस फिल्म के निर्माता विधु विनोद चोपड़ा ने इस बात का बखूबी ध्यान रखा है कि ये फिल्म किसी कंट्रोव र्सी या विवाद में ना फंसे. फिल्म की एक्टिंग की बात करें तो आदिल खान और सादिया खान ने फिल्म में शानदार अभिनय किया है. ऐसा बिल्कुल नहीं लगता है कि दोनों की पहली फिल्म है.

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