मजदूरों को बस से भेजने वाले सोनू सूद कभी ट्रेन में टॉयलेट के पास सोते थे!
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मजदूरों को बस से भेजने वाले सोनू सूद कभी ट्रेन में टॉयलेट के पास सोते थे!

Sonu Sood

मधु चौरसिया, लंदन।
सोनू सूद एक ऐसा नाम जो आज देश के बच्चे-बच्चे की ज़ुबान पर है। मज़दूरों का मसीहा कहे जाने वाले सोनू सूद को आज कौन नहीं जानता। देश में ही नहीं विदेशों में बसे भारतीय भी सोनू की इस पहल के कायल हो चुके हैं। मज़दूर तो वो सभी हैं जो अपनी मिट्टी से दूर रोज़ी रोटी की तलाश में आशियाना बनाकर रह रहे हैं, कोई अमीर तो कई गरीब। लेकिन देश के मज़दूरों की परेशानियों को किसी ने समझा, तो वो हैं सोनू सूद।

फिल्मों में निगेटिव रोल से मशहूर ये एक्टर अब अपनी दरियादिली की वजह से हर जगह छा गया है। अब तक हजारों प्रावसी मज़दूरों को उनके घर की चौखट तक छोड़कर आनेवाले इस हीरो को लोग सलाम कर रहे हैं। क्या आप जानते हैं सोनू की इस दरियालिली की कहानी कैसे और कब शुरू हुई। दरअसल सोनू जब नागपुर में अपनी पढ़ाई करते थे तब से लेकर करियर के शुरूआती दिनों तक वो ट्रेन में बिना रिजर्वेशन के सफ़र किया करते थे। हालांकि उनके पिता उन्हें पैसे देते थे, लेकिन वो हमेशा बचत कर कम खर्च में सफर किया करते थे और ये बात उन्होंने अपने परिवार से हमेशा छुपाई। वो जब भी घर आते बिना रिजर्वोशन के आते और अक्सर समाचर पत्र को बिछाकर रेल की फर्श पर ही लेट जाया करते थे।

Sonu Sood with his team.

कई बार तो उन्हें जगह नहीं मिलती और उन्हें टॉयलेट के पास बाली थाली जगह पर रात बितानी पड़ती थी। ये बात उन्होंने परिवार को तब बताई जब उनकी पहली मूवी रिलीज हुई और वो अपनी कमाई के पैसों से रेल में रिजर्वेशन कर पहली बार सीट पर बैठकर घर लौटे। मॉडलिंग और फिल्मों में काम मिलने से पहले वो मुंबई के ऐसे घर(चॉल) में रहते थे जहां सोने के लिए जगह इतनी छोटी हुआ करती थीं कि करबट बदलने के लिए भी उन्हें उठना पड़ता था। ऐसा नहीं था कि सोनू को उनके पिता पैसे नहीं देते थे। सोनू पैसों की कद्र करते थे और कम खर्च में अपना गुज़ारा करने की पूरी कोशिश करते थे। ऐसे में जो इंसान इतने संघर्षों के बाद आगे बढ़ा हो वो अपनी पुरानी यादें कैसे भूल सकता है। यही वजह है कि सोनू प्रावासी मज़दूरों के दर्द को अपना दर्द समझते हैं।
पंजाब के मोगा में जन्में और पले बढ़े सोनू के पिता मेन बाजार में बॉम्बे क्लोद हाउस नाम की दुकान चलाते थे। सोनू जब भी मुंबई से घर लौटते अपने पिता की दुकान पर ज़रूर जाते। वहां के सभी कर्मचारियों से निजी तौर पर मुलाक़ात करते और उनका हालचाल पूछते थे। वो अपने पिता को कड़ी मेहनत करते देखते और उनकी बेहद कद्र किया करते थे।

उनके पिता अपनी दुकान के बाहर अक्सर लंगर का आयोजन करते थे। उनकी मां डीएम कॉलेज मोगा में इंग्लिश की लेक्चरर थीं और उनके पास जो भी जरूरतमंद स्टूडेंट ट्यूशन के लिए आते वो उनसे कोई ट्यूशन फ़ीस नहीं लेती थी। सोनू अपने माता-पिता से बेहद लगाव रखते थें। हालांकि अब उनके माता-पिता इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनके संसकार सोनू को हमेशा कुछ बेहतर करने के लिए प्रेरित करते हैं।
सोनू सूद का कहाना है कि प्रवासियों को पैदल घरों की और जाते देखकर उन्हें बेहद तकलीफ़ महसूस हो रही थीं। ऐसे में वो हाथ पर हाथ धरे कैंसे बैठ सकते थे। उन्होंने प्रवासी मज़दूरों की परेशानियों को इसलिए महसूस किया क्योंकि उन्होंने ख़ुद मुंबई ट्रेन में बिना रिजर्वेशन के सफ़र किया है। जब वो नागपुर में इंजीनियरिंग कर रहे थे तब भी अक्सर बसों और ट्रेनों में बिना रिजर्वेशन के सफ़र किया करते थे।
ऐसे में लॉकडाउन की वजह से जब उन्होंने बच्चों, बुजुर्गों, महिलाओं को सड़कों पर पैदल जाते देखा तो उनका दिल कराह उठा और उन्होंने हर जरूरतमंद को उनकी मंजिल तक पहुंचाने की ठान ली। उनका कहना है कि मेरा बैकग्राउंड, मेरे माता-पिता ने जो संस्कार मुझे दिए हैं आज मैं जो कुछ कर रहा हूं, उसके पीछे की वजह वही हैं। उनका कहना है कि मैं जब तक एक-एक प्रवासी को उनके घर न भेज दूं तबतक नहीं रूकूंगा, जब तक अंतिम प्रावसी घर न पहुंच जाए मेरा यह सिलसिला चलता रहेगा।

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