अक्षय कुमार की फिल्म ‘लक्ष्मी’ पहली ऐसी फिल्म है जिसमें इतना बड़ा स्टार की फिल्म सिनेमाघर की बजाय सीधे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुई। 9 नवंबर को यह फिल्म प्रदर्शित कर दी गई। हालांकि इस फिल्म की रिव्यू खास नहीं आई। वहीं लक्ष्मी ने सभी फिल्मों के व्यूअरशिप रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। रिलीज होने के कुछ ही घंटों में यह व्यूअरशिप के मामले में बॉलीवुड की ब्लॉकबस्टर साबित हुई है। लक्ष्मी को हॉरर प्लस कॉमेडी फिल्म के रूप में प्रचारित किया गया, लेकिन फिल्म के कॉमेडी सीन ऐसे हैं जिन्हें देख हंसी नहीं आती। हॉरर दृश्यों को देख डर नहीं लगता। मनोरंजन के लिहाज से फिल्म खाली निकली।

कहानी की बात करें तो लक्ष्मी, हरियाणा के रेवाड़ी में रहने वाले आसिफ़ (अक्षय कुमार) और रश्मि (कियारा आडवाणी) की कहानी है, जिन्होंने प्रेम-विवाह किया है। आसिफ़ के साथ रश्मि ख़ुश है। उनके साथ आसिफ़ का भतीजा शान भी रहता है, जिसके माता-पिता कुछ वक़्त पहले एक हादसे में मारे गये थे। आसिफ़ टाइल्स और मारबल का बिज़नेस करता है। तर्कसंगत सोच रखने वाले आसिफ़ को भूत-प्रेतों में यक़ीन नहीं है और अंधविश्वास भगाने के लिए एक संस्था भी चलाता है।
रश्मि के परिवार वाले ख़ासकर पिता सचिन (राजेश शर्मा) बेटी के दूसरे मजहब में शादी करने से नाराज़ हैं। शादी को तीन साल हो गये, लेकिन रश्मि अपने घर नहीं गयी। आख़िरकार, अपनी शादी की 25वीं सालगिरह के सेलिब्रेशन के लिए रश्मि की मां रत्ना (आएशा रज़ा मिश्रा) उसे अपने घर बुलाती हैं। रश्मि यह सोचकर ख़ुश हो जाती है कि इस बहाने परिवार वाले आसिफ़ से मिल लेंगे और शायद उनकी नाराज़गी दूर हो जाए। आसिफ़, रश्मि और शान दमन पहुंचते हैं। जैसा कि अपेक्षित था, रश्मि के पिता आसिफ़ से ख़फ़ा रहते हैं। हालांकि, रश्मि के भाई दीपक (मनु ऋषि) और उसकी पत्नी अश्विनी (अश्विनी कालसेकर) को आसिफ़ को स्वीकार करने में कोई दिक्कत नज़र नहीं आती। दीपक जगराता में गाने का काम करता है।

रश्मि के मायके वाले घर के पड़ोस में एक बड़ा-सा खाली प्लॉट है, जिस पर किसी भूत-प्रेत का साया माना जाता है। कोई वहां नहीं जाता। एक दिन आसिफ़ बच्चों पड़ोस के बच्चों को यह कहकर कि भूत-प्रेत कुछ नहीं होता, प्लॉट में खेलने ले जाता है। स्टंप ज़मीन में गाड़ते समय कुछ परलौकिक शक्ति का एहसास होता है और अचानक मौसम बिगड़ जाता है। सारे बच्चे डरकर भाग जाते हैं। आसिफ़ घर आ जाता है।
इसके बाद घर में कुछ सुपरनेचुरल पॉवर का खेल शुरू हो जाता है। रश्मि की मां घर में पूजा करवाती है तो एक आत्मा के होने की पुष्टि होती है। इधर, आसिफ़ की हरकतें बदलने लगती हैं। जब वो रूह के प्रभाव में होता है तो उसे लाल चूड़ियां पहनना अच्छा लगने लगता है। साड़ियों की दुकान में वो लाल साड़ी पर मोहित हो जाता है। नहाते वक़्त हल्दी का लेप लगाता है। हालांकि, होश में आने पर कुछ याद ना होने का स्वांग करता है। कुछ घटनाक्रम के बाद आसिफ़ के अंदर प्रवेश कर गयी रूह बताती है कि वो लक्ष्मी किन्नर है और अपना बदला लिये बिना वापस नहीं जाएगी।

आसिफ़ से भूत-प्रेत का साया हटवाने के लिए एक पीर बाबा की मदद ली जाती है तो लक्ष्मी की बैकस्टोरी पता चलती है। एक भूमाफ़िया ने लक्ष्मी की ज़मीन पर अवैध क़ब्ज़ा करने के बाद अपने परिवार के साथ मिलकर लक्ष्मी और उसे बचपन में शरण देने वाले अब्दुल चाचा और उनके मंदबुद्धि बेटे का क़त्ल कर दिया था, जिनसे बदला लेने के लिए लक्ष्मी आसिफ़ के शरीर पर क़ब्ज़ा करती है। इसके साथ फ़िल्म की कहानी लक्ष्मी के बदले पर फोकस हो जाती है। पीर बाबा की मदद से आसिफ़ लक्ष्मी की आत्मा से छुटकारा पा लेता है, लेकिन लक्ष्मी की कहानी सुनकर इतना भाव-विह्वल हो चुका होता है कि क्लाइमैक्स में उसका बदला पूरा करने के लिए एक अप्रत्याशित क़दम उठाता है।
बता दें कि इस फिल्म से राघव लॉरेंस ने डायरेक्टोरियल डेब्यू किया है जो फैन्स को खुश करने में कामयाब न हो सके हैं। फिल्म की रिलीज से पहले यह कॉन्ट्रोवर्सी का भी शिकार हुई थी। कई वजहों से अक्षय कुमार की फिल्म को बॉयकॉट करने की मांग की जा रही थी, जिसके लिए लोगों ने सोशल मीडिया पर एक कैंपेन चलाया था।