Gulabo Sitabo Review: दो शेख चिल्लियों की कहानी जो हंसाएगी भी गुदगुदाएंगी भी
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Gulabo Sitabo Review: दो शेख चिल्लियों की कहानी जो हंसाएगी भी गुदगुदाएंगी भी

ऑनलाइन रिलीज होने वाली कुछ बड़ी फिल्मों में अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना की फिल्म ‘गुलाबो सिताबो’ शामिल है. लॉकडाउन के बाद ये पहली ऐसी फिल्म हैं, जिसका प्रीमियर भी ओवर दी टॉप (OTT) प्लेटफार्म पर हुआ. बड़े पर्दे की यह फिल्म OTT Platform अमेजन प्राइम वीडियो (Amazon Prime Video) पर रिलीज हो चुकी है.

फिल्म के निर्देशक सुजीत सरकार ने एक बेहद अनोखे अंदाज में पेश किया है. फिल्म हल्की-फुल्की कॉमेडी है. इसलिए आपको थोड़ा गुदगुदाएंगी भी.

दरअसल ‘गुलाबो सिताबो’ कहानी है दो शेख चिल्लियों की. मिर्जा जो 78 साल के लालची, कंजूस, झगड़ालू स्वभाव के हैं, जिनकी जान उस हवेली में बसती है, जो उनकी नहीं बल्कि उनकी बीवी फातिमा की पुश्तैनी जायदाद है. इसीलिए इसका नाम फातिमा महल है. बीवी 17 साल बड़ी हैं, जायदाद उसकी हो जाए इसके लिए वो उसके मरने का इंतजार करता है. पैसों के लिए हवेली की पुरानी चीजों को चोरी से बेचता रहता है.

हवेली में कई कमरें हैं, इसलिए हवेली में कुछ किराएदार भी रहते हैं, जिसमें से एक है बांके रस्तोगी. यहां वो अपनी मां और तीन बहनों के साथ रहता है. छठी तक पढ़ा है और आटा चक्की की दुकान चलाता है. मिर्जा को हमेशा पैसों की किल्लत रहती और वो हमेशा इन किराएदारों से किराए का तकाजा करता रहता है और बांके के साथ उसकी कभी नहीं बनती. मिर्जा उसे परेशान करने के नए-नए तरीके ढूंढता है, ताकि वो जल्द से जल्द हवेली खाली कर के चला जाए.

कहानी में मोड़ तब आता है, जब मिर्जा एक वकील के साथ मिलकर बिल्डर को हवेली बेचने की तैयारी कर लेता है. वहीं, बांके एलआईजी फ्लैट के लालच में पुरातत्व विभाग के एक अधिकारी से मिलकर प्लानिंग करने लगते हैं. काफी जोड़तोड़ के बाद हवेली किसकी होती है, ये फिल्म देखकर आपको पता चलेगा.

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