Movie Review: धूल में दब गए इतिहास के एक पन्ने को झाड़ती फिल्म है ‘तानाजी’
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Movie Review: धूल में दब गए इतिहास के एक पन्ने को झाड़ती फिल्म है ‘तानाजी’

भारत के इतिहास में कई ऐसे योद्धा हुए जिनकी कहानियां बड़े आदर के साथ सुनी-सुनाई जाती तो हैं, लेकिन उनको इतिहास के पन्नों में शायद ही जगह मिल पाई। उन्हीं नामों में मराठा सूबेदार तानाजी मालुसरे रहें। कोंडाना किले को पुन: प्राप्त करने की लड़ाई में जब तानाजी मारे गए, तो शिवाजी महाराज ने कहा था- ‘गढ़ तो आया, पर सिंह चला गया।’ कहते हैं, शिवाजी ने उसके बाद कोंडाना का नाम बदल कर सिंहगढ़ कर दिया।

अजय देवगन की फिल्म तानाजी की ऐतिहासिकता में तो कोई संदेह नहीं है, मगर इतिहास में उनके बारे में जानकारी बहुत कम उपलब्ध है। उन पर सवा दो घंटे की फिल्म बनाने के लिए निश्चित रूप से काफी मेहनत करनी पड़ी होगी।

इस फिल्म की पटकथा के बारे में बात करें तो छत्रपति शिवाजी (शरद केलकर) ने अपनी कूटनीति, रणणीति और छापापार युद्ध शैली की बदौलत दक्षिण में अपने शासन का अच्छा-खासा विस्तार कर लिया था। मुगलों के साथ उनका शह-मात का खेल जारी था।

उधर औरंगजेब (ल्यूक केनी) ने दक्षिण में अपने साम्राज्य को और मजबूती देने की योजना बनाई। उसने बड़ी सेना दक्षिण की ओर भेजी। शिवाजी को मुगलों से समझौता करना पड़ा और अपने 23 किले उन्हें देने पड़े, जिनमें कोंडाना भी शामिल था।

उस समय शिवाजी की मां राजमाता जीजाबाई (पद्मावती राय) ने प्रतिज्ञा की, जब तक कोंडाणा फिर से मराठों के पास नहीं आ जाता, तब तक वे नंगे पैर रहेंगी। चार साल बाद मराठे अपनी शक्ति जुटा कर कोंडाना पर फिर से कब्जा करने की तैयारी करते हैं।

औरंगजेब कोंडाना का किलेदार बनाकर उदयभान सिंह राठौड़ (सैफ अली खान) को भेजता है। शिवाजी इस अभियान का नेतृत्व स्वयं करने की योजना बनाते हैं। उनके सलाहकार ऐसा करने से मना करते हैं और अपने किसी विश्वस्त को भेजने की सलाह देते हैं।

सुबेदार तानाजी मालुसरे (अजय देवगन) ने कई लड़ाइयां जीती हैं। लेकिन शिवाजी महाराज उनको इस अभियान में नहीं भेजना चाहते, क्योंकि वह और उनकी पत्नी पार्वती (काजोल) अपने बेटे की शादी की तैयारियों में व्यस्त हैं। तानाजी को यह बात पता लग जाती है, और वह शिवाजी को इस बात के लिए मजबूर कर देते हैं कि कोंडाणा के अभियान का नेतृत्व वह तानाजी को करने दें। उनके लिए निजी जीवन से ज्यादा महत्वपूर्ण स्वराज और भगवा ध्वज है।

वहीँ तानाजी प्रतिज्ञा करते हैं कि वह उदयभान को मार कर राजमाता के पैरों में जुतियां पहनाएंगे। लेकिन उनके साथ विश्वासघात होता है और उनकी योजना उदयभान को पता लग जाती है…

हालांकि इस फिल्म में ऐतिहासिक घटनाओं का प्रतिशत कितना है और कितनी कल्पना है, यह कह पाना मुश्किल है। शिवाजी के समय और माहौल को रचने में निर्देशक और उनकी टीम सफल रहे हैं। संवादों में दम है और वे दर्शकों के मन में असर छोड़ने वाले हैं। तानाजी के रूप में अजय देवगन और पार्वती के प्रेम को भी कम दृश्यों में प्रभावशाली तरीके से दिखाया गया है।

दरअसल ये कहना गलत नहीं होगा यह फिल्म समय की धूल में दब गए इतिहास के एक पन्ने को झाड़ कर सबके सामने लाने की कोशिश करती है।

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