शरणाथियों की असल जिंदगी को दिखाएगी FootLoose की कहानी
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शरणाथियों की असल जिंदगी को दिखाएगी FootLoose की कहानी

Footloose Trailer Filmynism

नाजिया अहमद।
एक ऐसी कहानी है जो शरणार्थियों को इंसानियत की नजरों से देखती है. अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी दिवस के मौके पर डॉक्यूमेंट्री ‘फुटलूज’ (FootLoose) का ट्रेलर जारी हो चूका है. यह निर्देशक गुलशन सिंह की पहली डॉक्युमेंट्री है, जिसमें वह काफी प्रभावित करते हुऐ नजर आ रहे हैं.

फुटलूज- अ स्टोरी ऑफ बिलॉन्गिंग (FOOTLOOSE : A Story of Belonging) का ज्यादातर हिस्सा दिल्ली में शूट हुआ है, जहां रोहिंग्या शरणार्थियों और पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थी दोनों मौजूद हैं. यह डॉक्यूमेंट्री पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार से भारत आए शरणार्थियों की की ज़िन्दगी से जुड़ी है। मुद्दा साफ है कि जो आदमी आपसे शरण मांग रहा है क्या केवल उसका धर्म देखकर इसका राजनीतिक इस्तेमाल किया जाना चाहिए? धर्म जो इंसान को केवल जीने का रास्ता नहीं दिखाता बल्कि उसकी सोच भी बदल सकता है. भारत में राजनीति करने वाले बहुत हैं लेकिन उनको फॉलो कितने लोग कर पाते हैं, इस पर डॉक्यूमेंट्री में सीधा प्रहार किया गया है. यह डॉक्यूमेंट्री लगभग 3 साल में बनाई गई है जिसमें भारत में म्यांमार से आए रोहिंग्या और पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थियों की परेशानियां रखी गई हैं.

इस डॉक्यूमेंट्री की कहानी आपको शरणार्थियों के लिए अपनाये जाने वाला दोहरा रवैया खुलकर सामने रखती है। फिल्म में बहुत ऐसे सीन हैं जो आपको वास्तव में शरणार्थियों के लिए सोचने को मजबूर कर देती हैं। एक सीन में कुत्ते के बच्चे को कपड़े में सिमेटा हुआ शरणार्थी बच्चा, जली हुई रोहिंग्या बस्ती में अपना घर का सामान ढूंढती लड़की या अपने जले घर की अलमारी पीटता हुआ बच्चा जरूर एक इंसान के तौर पर आपको सोचने को मजबूर करेंगे।

1 घंटे 33 मिनट की इस कहानी में आप ये देखेंगे कि शरणार्थी चाहे कहीं का भी हो वह बुरी स्थिति और अपने बीते हुऐ कल से अपने बेहतर भविष्य की तलाश में दूसरे देश जाता है और इसी मुद्दे पर यहां हर शरणार्थी से बात की गई है. जरूरी बात यह है कि कैसे राजनीति में धर्म के जरिए शरणार्थियों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, यह इसमें बहुत बेहतर तरीके से पेश किया गया है.

डॉक्यूमेंट्री सीधे रोहिंग्या की समस्या पर उनके इतिहास और वर्तमान स्थिति से बात करना शुरू करती है. ठीक उसी टाइमलाइन में पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थियों के साथ हुई नाइंसाफी भी दिखाई गई है. डॉक्यूमेंट्री में रोहिंग्या लोगों की स्थिति को साफ-साफ दिखाया गया है. ये लोग भारत से नागरिकता नहीं मांग रहे, बस शरण मांग रहे हैं. दूसरी तरफ, पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थी भी हैं जो खुद बहुत बुरी स्थिति में हैं लेकिन वे भारत की नागरिकता मांग रहे हैं और उनका किस तरह राजनीतिक इस्तेमाल किया जा रहा है, यह इस डॉक्यूमेंट्री को देखने पर पता चलता है. फिल्म में नागरिकता संशोधन विधेयक(CAA) और एनआरसी (NRC) पर भी खुलकर बात की गई और उसके पक्ष को भी स्पष्ट तरीके से रखा गया है. फिल्म का रिसर्च पत्रकार रोहित उपाध्याय ने की है तो उनकी मेहनत भी फिल्म में साफ दिखाई देती है.

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