काफी वक़्त के बाद बच्चों के लिए ‘अटकन चटकन’ नाम की फिल्म बनाई गई है। इसका पांच सितम्बर को डिजिटल प्रीमियर होने वाला है। इस संगीतमय फिल्म में चाय की डिलीवरी करने वाले बच्चे गुड्डू (लिडियन नादस्वरम) तथा उसके चार हमउम्र साथियों के संघर्ष और सपनों की कहानी है।
वो कहते है न सपनों का कद हैसियत के हिसाब से तय नहीं होता। जब देखने ही हैं तो क्यों न बड़े सपने देखे जाएं। मुफलिसी से जूझते इन बच्चों के लिए संगीत हर दुख-दर्द की दवा है। संगीत की दीवानगी को लेकर उनकी छोटी-छोटी आंखों का बड़ा सपना यह है कि वे अपना बैंड बनाएं और तूफानी सुरों के साथ दुनिया पर छा जाएं। उनका सपना साकार होता है या नहीं, यह तो फिल्म देखने के बाद पता चलेगा।
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सरकार ने देश के भावी नागरिकों को शिक्षाप्रद मनोरंजन देने के मकसद से 1955 में जो बाल फिल्म सोसायटी बनाई थी, वह फिल्में तो बनाती है, लेकिन उसकी रफ्तार बेहद सुस्त है। पिछले 65 साल में उसने करीब 250 फिल्में बनाईं। देश की आबादी का एक तिहाई हिस्सा बच्चों का है, इसलिए बच्चों के लिए फिल्में बनाना कारोबार के लिहाज से घाटे का सौदा नहीं माना जा सकता।
बच्चों की फिल्मों की बात करें तो ‘अंजलि’, ‘रॉकफोर्ड’, ‘तारे जमीन पर’, ‘स्टेनली का डिब्बा’, ‘ब्ल्यू अम्ब्रेला’, ‘मकड़ी’, ‘आई एम कलाम’, ‘चिल्लर पार्टी’ और ‘हवा हवाई’ जैसी कई फिल्मे रही है।